Tuesday, May 28, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

शहर में चार दशकों से काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद भार्गव कहते हैं कि गुना-शिवपुरी की जनता को 'राजा को हर हाल में जिताने' की सामाजिक-मानसिक कंडिशनिंग से निकलने में वक़्त लगा है. लेकिन 2019 के नतीजे यह साफ़ बताते हैं कि अब लोग बैलेट बॉक्स में अपने और अपने शहर के विकास के लिए नए विकल्पों पर निडर होकर वोट दे रहे हैं.
इन नतीजों को 'महल' की पहली हार बताते हुए भार्गव कहते हैं, "यहां कांग्रेस की हार महत्वपूर्ण नहीं क्योंकि विजयाराजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया समेत इस परिवार के कई लोग यहां भाजपा से भी खड़े हुए और जीते. माहौल ऐसा था कि 'महल' का आदमी जहाँ से भी खड़ा हो जाएगा, जिस भी पार्टी से खड़ा हो जाएगा, जीतना तो उसका तय है. ऐसे में ज्योतिरादित्य का पहली बार हारना और वो भी इतने बड़े अंतर से, वाकई यहां की राजनीति में आया एक निर्णायक मोड़ है."
सिंधिया की हार के कारण बताते हुए वो जोड़ते हैं, "यहां विकास के लिए सिंधिया ने बहुत कोशिश की. जैसे कि वो यहां सीवर प्रोजेक्ट लाए, मणीखेड़ा डैम का प्रस्ताव लाए और एक मेडिकल कॉलेज खोलने का प्रस्ताव भी पारित किया. लेकिन कोई भी काम पूरा नहीं हो पाया."
"सीवर प्रोजेक्ट की वजह से 4 साल से यह शहर धूल में डूबा रहा, तीन लोगों की सीवर में मौत हो गयी, सड़कें खुदी रही लेकिन प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ. यही सारे अधूरे काम चुनाव के वक़्त सिंधिया जी के गले की फाँस बन गए और फिर यह कृषि प्रधान इलाक़ा है, किसानों के लिए इन्होंने कुछ नहीं किया."
"इनके पास भाषणों में बोलने के लिए कुछ नहीं था. दूसरी तरफ़ भाजपा ने इनके ख़िलाफ़ ख़ूब महौल बनाया. वाणिज्य मंत्री रह चुके हैं, चार बार से सांसद हैं फिर क्यों नहीं इलाक़े के लिए कुछ किया - जैसी बातें यहां ख़ूब तैर रही थीं."
प्रमोद आगे सिंधिया परिवार द्वारा कभी जनता से भाजपा तो कभी कांग्रेस को वोट देने की अपील को भी उनके ख़िलाफ़ जाता हुआ बताते हैं.
"जब यशोधरा भाजपा से विधानसभा चुनाव लड़ती हैं तो ज्योतिरादित्य कांग्रेस के पक्ष में बिल्कुल प्रचार नहीं करते. बल्कि महल की तरफ़ से लोगों से अपील की जाती है कि भाजपा को वोट दें. फिर जब उसी महल के ज्योतिरादित्य लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं तो यशोधरा को अपनी पार्टी भाजपा के पक्ष में बिल्कुल प्रचार नहीं करती. उल्टा महल की तरफ़ से अब लोगों से पंजे पर मुहर लगाने की अपील की जाती है."
प्रमोद जोड़ते हैं कि इतने सालों में आम जनता यह समझ गयी है कि 'महल' के सारे लोग एक हैं.
"इसलिए अगर उन्हें अपने लिए विकास चुनना है तो महल से इतर, काम के हिसाब से प्रतिनिधि चुनना होगा. क्योंकि सिंधिया जी तो महाराज है. बच्चे का एडमिशन हो या किसी का ट्रांसफर हो- ऐसी रोज़मर्रा के लोगों के सैकड़ों ज़रूरी कामों की दरख्वास्त को वो ले लेते हैं लेकिन आगे कुछ नहीं करवाते क्योंकि उन्हें यह काम छोटे लगते हैं."
"साथ ही ज्योतिरादित्य का व्यवहार अपने पिता से बहुत अलग हैं. लोग उनसे मिलने महल पर जाते हैं तो तीन-चार घंटे इंतज़ार करना पड़ता है. इसलिए जनता का नाता भी राज परिवार से टूटता जा रहा है. अब वह अपने लिए अपने काम करवा पाने वाले और विकास पर ध्यान देने वाले प्रतिनिधि चुन रही है."
शिवपुरी-गुना सीट पर भाजपा का चुनाव प्रचार संभालने वाले राजू बाथम कहते हैं कि विधान सभा के नतीजों के बाद ही उनकी पार्टी को अंदाज़ा हो गया था कि सिंधिया लोकसभा में हारेंगे.
"इस लोकसभा सीट में प्रदेश की 8 विधानसभा सीटें आती हैं. हमने सभी सीटों पर भाजपा को मिले वोटों को जोड़ा तो देखा हमें इन सीटों पर कांग्रेस से 16400 अधिक मत मिले थे. उसी से हमें अंदाज़ा हो गया कि जनता का मूड कैसा है. बाक़ी यह राष्ट्रीय चुनाव था और मोदी जी को लेकर लोगों में उत्साह और प्यार है. इसलिए मोदी लहर में भी इस बार गुना लोकसभा सीट पर भाजपा को यह ऐतिहासिक जीत मिली है."
उधर, कांग्रेस के ज़िला अध्यक्ष बैजनाथ सिंह यादव भी इस जीत के लिए 'मोदी लहर' को ही दोष देते हैं.
बीबीसी से बातचीत में वह कहते हैं, "मोदी लहर की वजह से हम हार गए. उसके साथ ही वो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर बनवाए गए हैं, उससे भी हमारे वोट भाजपा की तरफ़ मुड़ गए. वरना सिंधिया जी जैसे ईमानदार और जनता के लिए काम करने वाले नेता कभी नहीं हारते."
स्थानीय पत्रकार अजय खेमारिया कहते हैं कि भाजपा की इतनी प्रचंड जीत का अंदाज़ा यहां कांग्रेस के साथ-साथ भाजपा को भी नहीं था.
"सिंधिया के साथ-साथ भाजपा के स्थानीय लोग भी यह ठीक से नहीं भांप पाए थे कि इस बार मोदी की अंडरकरेंट कितनी मज़बूत है."
"सिंधिया जी बीते चार चुनावों से जीत रहे हैं और कहने को ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के जनरल सेक्रेटरी भी हैं. लेकिन अगर आप गुना शिवपुरी में ढूँढने जाएँ तो आपको कांग्रेस का कोई कैडर ही नहीं मिलेगा. जो पुराना कैडर था, वह इनके चुनाव प्रचार तक में नहीं उतरा और इनके 'फॉलोअर' सोचते रह गए कि महाराज तो ऐसे ही जीत जाएंगे, काम करने की क्या ज़रूरत है."
वे ये भी कहते हैं कि कांग्रेस को दिग्विजय सिंह के गुट और सिंधिया परिवार के गुट की अनबन का भी नुक़सान हुआ.
वे कहते हैं, " विधानसभा चुनावों में राहुल गांधी भिंड, मुरैना और ग्वालियर में तीन सभाएँ करने गए थे. लेकिन उनमें से एक में भी सिंधिया जी जाकर उनके साथ खड़े नहीं हुए और न ही बाद में कभी उन प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार किया, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उन सीटों पर टिकट उनके मन मुताबिक़ नहीं दिए गए थे. "
देर शाम जब मैं सिंधिया परिवार की ऐतिहासिक धरोहर 'सिंधिया छतरी' का माहौल देखने गयी तो वहां स्थानीय लोगों को टिकट बाँट रहे चौकीदार ने नतीजों के बारे में चर्चा करते हुए कहा, "अब तो लगता है, वाकई जनता ही राजा है. आख़िर हमारे महाराज को जो हरा दिया."

Wednesday, May 15, 2019

दोनों पार्टियों के बीच मतभेद?

इस संदर्भ में जब हमने हापुड़ ज़िले के पुलिस अधीक्षक यशवीर सिंह से बात की तो उन्होंने कहा कि दस हज़ार रुपये में सौदे की बात जो सामने आई है उसका अभी तक कोई प्रमाण नहीं है.
यशवीर सिंह बताते हैं कि पुलिस ने गीता द्वारा बताए गए अलग-अलग रेप की घटनाओं की जांच करवाई है लेकिन ऐसी कोई भी बात अभी तक प्रमाणित नहीं हुई है.
जब हमने यशवीर सिंह से पूछा कि क्या यह आरोप सही है कि गीता की एफ़आईआर नहीं लिखी गई थी तो उन्होंने बताया कि पूर्व में गीता के ख़िलाफ़ भी कई मामले आए हैं और ख़ुद गीता ने भी कई बार अलग-अलग लोगों पर एफ़आईआऱ दर्ज करवाई है. लेकिन दोनों ही प्रकरण जांच के बाद झूठे पाए गए.
हालांकि उन्होंने ये ज़रूर कहा कि मामला संदिग्ध है और अभी भी जांच के दायरे में है.
गांव वालों की प्रतिक्रिया
जिस वक़्त हम श्यामपुरजट्ट गांव पहुंचे, गांव लगभग ख़ाली था. एक गुमटी पर कुछ लोग मौजूद थे जिनसे हमने गीता-विनोद-भुवन के बारे में पूछा तो उन्होंने पहले तो बात करने से इनक़ार दिया लेकिन पहचान ज़ाहिर न करने का आश्वासन देने पर बात की.
इस संदर्भ में जब हमने हापुड़ ज़िले के पुलिस अधीक्षक यशवीर सिंह से बात की तो उन्होंने कहा कि दस हज़ार रुपये में सौदे की बात जो सामने आई है उसका अभी तक कोई प्रमाण नहीं है.
यशवीर सिंह बताते हैं कि पुलिस ने गीता द्वारा बताए गए अलग-अलग रेप की घटनाओं की जांच करवाई है लेकिन ऐसी कोई भी बात अभी तक प्रमाणित नहीं हुई है.
जब हमने यशवीर सिंह से पूछा कि क्या यह आरोप सही है कि गीता की एफ़आईआर नहीं लिखी गई थी तो उन्होंने बताया कि पूर्व में गीता के ख़िलाफ़ भी कई मामले आए हैं और ख़ुद गीता ने भी कई बार अलग-अलग लोगों पर एफ़आईआऱ दर्ज करवाई है. लेकिन दोनों ही प्रकरण जांच के बाद झूठे पाए गए.
हालांकि उन्होंने ये ज़रूर कहा कि मामला संदिग्ध है और अभी भी जांच के दायरे में है.
गांव वालों की प्रतिक्रिया
जिस वक़्त हम श्यामपुरजट्ट गांव पहुंचे, गांव लगभग ख़ाली था. एक गुमटी पर कुछ लोग मौजूद थे जिनसे हमने गीता-विनोद-भुवन के बारे में पूछा तो उन्होंने पहले तो बात करने से इनक़ार दिया लेकिन पहचान ज़ाहिर न करने का आश्वासन देने पर बात की.
मार्च 2014: "हमारा अभियान स्पष्ट है, बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए."
अगस्त 2015: "बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं देना मोदी सरकार का धोखा."
अगस्त 2016: "जब तक बिहार जैसे पिछड़े राज्य को विशेष दर्जा नहीं दिया जाएगा, राज्य का सही विकास संभव नहीं है."
अगस्त 2017: "पीएम मोदी के मुकाबले कोई नहीं", पार्टी ने इस दौरान विशेष दर्जा के मुद्दे पर अघोषित चुप्पी साधी!
मई 2019: "ओडिशा के साथ-साथ बिहार और आंध्र प्रदेश
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के मुद्दे पर नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का स्टैंड पिछले पांच सालों में कुछ इस तरह बदला है.
इस दौरान बिहार की सत्ता पर नीतीश कुमार ही काबिज़ रहे, हालांकि केंद्र में सरकारें बदलीं और राज्य में उनकी सरकार के सहयोगी भी.
संयोग यह रहा कि जब भी जदयू विशेष दर्जा के मुद्दे पर आक्रामक हुई, केंद्र और राज्य में अलग-अलग गठबंधन की सरकारें रहीं और जब दोनों जगहों पर एनडीए की समान सरकार बनी तो पार्टी ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध ली.
अब लोकसभा चुनाव के छह चरण बीत जाने के बाद पार्टी ने एक बार फिर से राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने का राग अलापा है.
जदयू के महासचिव और प्रवक्ता केसी त्यागी ने इस बार बिहार के साथ-साथ ओडिशा और आंध्र प्रदेश को भी विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की है.
उन्होंने सोमवार को एक बयान जारी कर कहा, "साल 2000 में बिहार के विभाजन के बाद राज्य से प्राकृतिक संसाधनों के भंडार और उद्योग छिन गए. राज्य का विकास जैसे होना चाहिए था, नहीं हुआ. अब समय आ गया है कि केंद्रीय वित्त आयोग इस मुद्दे पर फिर से विचार करे."
फ़िलहाल केंद्र और राज्य में समान गठबंधन की सरकार है और लोकसभा चुनाव चल रहे हैं. ऐसे में जदयू के इस बयान से राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई है. तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे हैं.
19 मई को अंतिम चरण में बिहार की आठ सीटों पर मतदान होने हैं. और नीतीश कुमार के विरोधियों का कहना है कि वो एक बार फिर पलटी मारने की तैयारी कर रहे हैं.
वहीं जानकार इसे "सुविधा की राजनीति" के तौर पर देख रहे हैं. हालांकि जदयू इन सभी अशंका और आरोपों को खारिज कर रही है और भाजपा के साथ अपने रिश्ते को कायम रखने की प्रतिबद्धता जता रही है.
केसी त्यागी ने बीबीसी से कहा कि वे ओडिशा के साथ-साथ आंध्र प्रदेश को भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के समर्थक हैं, जिसकी हालत बंटवारे के बाद बिगड़ गई और जगनमोहन रेड्डी के विशेष राज्य के दर्जे की मांग का भी समर्थन करते हैं.
हाल ही में फणी तूफ़ान ने ओडिशा को काफी नुकसान पहुंचाया, इसके बाद वहां के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने केंद्र से राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग उठाई.
वहीं, आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी तेलुगू देशम पार्टी और विपक्ष के नेता जगनमोहन रेड्डी भी राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग पहले से करते रहे हैं.
इसी मुद्दे पर पिछले साल मार्च के महीने में तेलगू देशम पार्टी केंद्र में एनडीए गठबंधन से अलग हो गई थी जो कि अटल बिहारी वाजपेयी के दौर से ही एनडीए के साथ रही थी.
केसी त्यागी के इस बयान पर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए एक बार फिर पलटी मारने की आशंका जताई है.
पार्टी प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने बीबीसी से कहा, "जनता के मन में जो संशय हैं, उसकी पृष्ठभूमि तैयार हो रही है. पलटी मारना नीतीश कुमार की फितरत है, उन्हें इसका अनुभव प्राप्त है. जदयू को लग रहा है कि देश में भाजपा की सरकार नहीं लौटने वाली है, इसलिए वो यह मुद्दा उठा रहे हैं."
नवंबर 2015 में बिहार में जदयू ने राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर राज्य में तीसरी बार सरकार बनाई थी. जुलाई 2017 में जदयू ने आरजेडी का साथ छोड़ एनडीए में फिर से आने का फ़ैसला किया था तब से इस मांग को लेकर वो ख़ामोश थी.
चुनाव के आख़िरी चरण में जदयू की इस मांग को नीतीश कुमार की दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है.
जानकारों का मानना है कि विशेष राज्य के मुद्दे को फिर से उठना भाजपा को असहज स्थिति में डाल सकता है क्योंकि पार्टी के बड़े नेता और वित्तमंत्री अरूण जेटली पहले ही विशेष दर्जे की मांग को ख़ारिज करते हुए कह चुके हैं कि ऐसी मांगों का दौर समाप्त हो चुका है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राजद का आरोप सही साबित होगा और जदयू भी टीडीपी की राह चलेगी, इस सवाल पर केसी त्यागी कहते हैं, "हम भाजपा के साथ गठबंधन भी रखेंगे और अपनी मांग भी जारी रखेंगे. हमारी यह मांग बहुत पुरानी है. 2004 से यह मांग हम कर रहे हैं. नया प्रसंग नवीन पटनायक के बयान के बाद शुरू हुआ है, हमने अपनी मांग को सिर्फ़ दोहराया है."
लेकिन भाजपा अब आपकी सहयोगी है, फिर क्यों नहीं मिला विशेष राज्य का दर्जा, इस सवाल का जवाब केसी त्यागी थोड़ी खीझ के साथ देते हैं, "अभी चुनाव चल रहा है, आप कैसी बात कर रहे हैं कि जैसे आज हमने मांग उठाई और कल को दर्जा मिल जाएगा. ज़रूरी नहीं है कि हर मांग मानी जाए, ज़रूरी नहीं है कि हम हर मांग को उठाना छोड़ दे."
को भी मिले विशेष राज्य का दर्जा."