Friday, August 31, 2018

मेरी ड्रग्स की लत ने मेरी मां जैसी नानी को मार दिया: प्रतीक बब्बर

दिवंगत अभिनेत्री स्मिता पाटिल और जाने-माने अभिनेता एवं कांग्रेस नेता राज बब्बर के बेटे प्रतीक बब्बर 12 साल की उम्र में ही ड्रग्स के आदी हो गए थे.
इससे छुटकारा दिलाने के लिए उन्हें दो बार रिहैब सेंटर में भेजा गया था. आज वो इस आदत से पूरी तरह मुक्त हो गए हैं.
ड्रग्स के आदी होने की वजह वो अपने अंदर के गुस्से को बताते हैं. ये गुस्सा अपनी मां से न मिल पाने के दुख और पिता से बढ़ती दूरी के कारण था.
प्रतीक बब्बर ने 2008 में अपने करियर की शुरुआत फ़िल्म 'जाने तू या जाने न' से की थी. ये फ़िल्म आमिर ख़ान ने प्रोड्यूस की थी. इसके बाद वो आमिर ख़ान की एक और फिल्म 'धोबी घाट' में भी नज़र आए थे.
निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा की फिल्म 'आरक्षण' में भी वह अहम किरदार में दिखे थे. लेकिन उसके बाद वो लंबे समय तक फ़िल्मी दुनिया से ग़ायब रहे.
पिछले साल ही टाइगर श्रॉफ के साथ 'बाग़ी 2' में नज़र आए प्रतीक बब्बर अब निर्देशक अनुभव सिन्हा की फिल्म 'मुल्क' में नज़र आएं.
इस फ़िल्म के प्रोमोशन के दौरान बीबीसी से खास बातचीत में प्रतीक बब्बर ने कहा, "मैं मरने की कगार पर था. ड्रग्स अडिक्शन ने मुझे लगभग मार दिया था. मेरी नानी, जो मेरी मां जैसी थीं, की इसी चिंता में मौत हो गई कि में एक ड्रग अडिक्टेड हूं."
"उनकी मौत से मुझे गहरा सदमा लगा. मेरी नानी और नाना, दोनों ने मुझे बचपन से ही पाला था. आज मेरे दोस्त हैं, मेरे पिता हैं, मेरे भाई हैं लेकिन वो दोनों नहीं हैं. मैंने अपने आप से वादा किया है, उनके लिए मैं मरते दम तक कभी ड्रग्स को हाथ नहीं लगाऊंगा."
अभिनेता अक्सर अपनी ड्रग की आदतों को छुपाते हैं. उस पर खुलकर बात नहीं करते. प्रतीक कहते हैं, "ड्रग्स के साथ मेरे संघर्ष की कहानी 12 साल की उम्र से शुरू हुई थी."
"मेरे दिमाग़ में आवाज़ें कौंधती थीं कि मेरी मां कौन थी? होंगी वो बहुत कामयाब लेकिन मेरे साथ क्यों नहीं हैं, क्यों मैं अपने नाना-नानी के साथ रहता हूं? क्यों मेरे पिता मेरे साथ नहीं रहते? क्यों उनके पास मेरे लिए वक़्त नहीं है? पिताजी मिलने आते थे लेकिन मेरे साथ नहीं रहते थे. मेरे पिता मेरे हीरो हैं लेकिन वो एक अभिनेता होने के साथ-साथ नेता भी थे, जिसके चलते वो हमेशा व्यस्त रहते थे."
प्रतीक कहते हैं, "उनके पास मेरी बात सुनने का वक़्त नहीं था. पिता का मुझसे दूर रहना मेरे गुस्से का कारण भी था. सब लोग मुझे मेरी मां की क़ामयाबी के बारे में बताते थे लेकिन मुझे उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था. मैं अक्सर अपने नाना-नानी से लड़ता था. उन पर गुस्सा करता था और कहता था मुझे इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि वो कितनी कामयाब थीं, मुझे बस इस बात से फ़र्क पड़ता था कि वो मेरे साथ क्यों नहीं है. मैं बचपन में कई बार घर छोड़कर चला जाया करता था."
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए प्रतीक कहते हैं, "इन सबके चलते पहली बार 12 साल की उम्र से ड्रग्स लेना शुरू किया. 15 साल की उम्र में रिहैब सेंटर गया और एक साल बाद वापस लौटा. लेकिन ड्रग्स की लत इतनी थी कि वो फिर मैंने ड्रग्स लेना शुरू कर दिया."
प्रतीक बताते हैं कि वो बिना ड्रग्स के रह नहीं पाते थे. वो अपनी ज़िंदगी को अंधेरे में पाते थे, लेकिन आज वो बदल गए हैं और अब वो अपने काम के प्रति बहुत संजीदा हैं.
प्रतीक अपनी मां से जुड़ी यादों को साझा करते हैं, "सभी बताते हैं कि मां दिल की बहुत अच्छी थी. सबसे ख़ुश होकर मिला करती थी. कई लोगों के दिलों में उन्होंने अपनी जगह बनाई हुई है. मेरी भी कोशिश रहेगी उनकी तरह बनने की."
फ़िल्म 'मुल्क' में अभिनेता ऋषि कपूर और तापसी पन्नू के साथ प्रतीक बब्बर भी अहम किरदार निभाते नज़र आए. इस फ़िल्म में वो एक चरमपंथी के किरदार में दिखे.

Friday, August 17, 2018

抗灾与致富:中资旅游项目的海岛难题

加勒比岛国安提瓜和巴布达岛(以下简称安巴)的巴布达岛几乎被飓风厄马夷为平地,但这并没有阻碍中国投资者继续推进安提瓜岛上的建设项目。这些项目对于岛屿抵御之后自然灾害能力的影响,则令一些当地居民担忧。

去年9月,近十年来最强的大西洋风暴以超过185英里的时速席卷安巴,造成134人死亡,巴布达岛上近95%的房屋被毁,安提瓜岛则逃过一劫,几乎没受损失。

虽然红树林生态系统对保护岛屿免受自然灾害极为重要,但一达国际投资集团已获准继续在安提瓜岛的离岛圭亚那岛(属于安巴东北海洋管理区)建造饱受争议的赌场度假村。这片在理论上应该被保护起来的海岸线上生长着脆弱的红树生态系统。根据安巴2006年的《渔业法》,渔业司只有出于环保目的,才能批准 “修剪”红树林。

但当地传回的图像清楚地显示,一达度假村新造的海滩已经造成红树林的减少。据当地媒体《观察家报》报道,安巴总理加斯顿·布朗曾表示,为了加快该项目的进度,将考虑修改环境法。该项目先期将建设两家酒店。

"这一地区环境非常敏感,受到各种法律保护,那里有大片的珊瑚礁、海草床、沙地浅滩、未开发的小岛和极具生产力的海洋栖息地,” 在脸书上创建了“拯救圭亚那岛环境”页面的环境活动家福斯特·德里克说。

德里克还说,一边是保护自然生产环境和随之而来的低就业,另一边是旅游相关产业带来的各种建设项目和管理工作,小岛屿国家政府很难抵抗后者的诱惑。

安巴环境部表示,需要综合地对沿海环境影响和工程进行研究。但该部并未要求一达集团提交一份能突出项目存在的主要问题的新的环境影响评估(EIA)来替代现有文件。

 “新建海滩既不利于可持续发展,也不切实际,而且时间会证明这样做的代价会非常高昂,”环境部在审核一达目前的环境影响评估时说。

至关重要的红树林

 “红树林行动”(  )项目的生物学家、加勒比专家菲奥娜·威尔莫特指出,红树林不仅能够保护岩礁鱼类的繁育场所,还可以为候鸟提供栖息地,因此具有至关重要的意义。根据现有最近期的数据(2010),飓风厄马来袭之前,安提瓜岛上红树林的覆盖面积为 英亩( 公顷),即本岛面积的3%,而巴布达岛上红树林的面积为14468英亩( ),相当于该岛面积的35%。红树的根深植于海岸的沙土中,不仅能在潮汐变化时抵御汹涌而来的潮水,还能作为天然屏障,阻挡飓风季节的大风。砍伐红树林导致土地更容易受到侵蚀,从而令附近居民在暴风雨来临时得不到保护,安全受到威胁。

根据剑桥大学和“大自然保护协会”的一份报告,海啸时,红树林可以让海浪高度降低5%到30%,并且能够通过捕获二氧化碳来减轻气候变化的影响,抵御海平面上升造成的威胁。

威尔莫特建议,对安巴地区可能已经被飓风破坏了根系的红树林进行人工修复,并由政府从救灾资金中拨专款保护自然物种。

艰难的灾后重建

飓风厄马过后,中国政府向安巴提供了1600万美元的一揽子援助。在此之前,两国刚刚签署了一项经济技术合作协议。然而,目前还不清楚大部分援助资金将花在哪里。只有约120万美元将用于赈灾和建设新的社区中心。

安巴环境部的阿里卡·希尔在电子邮件中告诉“中拉对话”:“为了应对不断加剧的自然灾害,我们正在优先进行一些重点工作。” 这包括对遭受厄马破坏的三个地区的自然保护热点地带(如巴布达的科德灵顿湖国家公园)受到的影响进行更全面的评估,以及建立其抵御热带风暴和干旱的能力,希尔补充道。

然而,由于巴布达岛几乎所有的房屋和公共建筑都毁于厄马飓风,岛上民众担心政府会不顾环境法,以重建为由,把土地卖给那些企图建造旅游度假村的外国投资者。类似状况曾出现在安提瓜岛。

Monday, August 13, 2018

सूरज को छूने के मिशन पर उड़ा नासा का अंतरिक्ष यान

अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अपने पार्कर सोलर प्रोब यान को लॉन्च कर दिया है.
उम्मीद जताई जा रही है कि यह सूरज के सबसे नज़दीक पहुंचने वाला अंतरिक्ष यान होगा. इतिहास में अब तक कोई भी अंतरिक्ष यान सूरज के इतने क़रीब नहीं पहुंचा है.
पार्कर सोलर प्रोब को फ़्लोरिडा के केप केनवेरल से प्रक्षेपित किया गया.
पार्कर प्रोब को अंतरिक्ष में पहुंचाने वाला डेल्टा-IV हेवी रॉकेट स्थानीय समय के अनुसार सुबह 3.31 बजे छोड़ा गया. भारतीय समय के अनुसार रविवार दोपहर 1 बजे. नासा सन ऐंड स्पेस ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.
यह ऐसा पहला अंतरिक्ष यान है जिसे जीवित व्यक्ति 91 वर्षीय खगोलशास्त्री यूजीन पार्कर के नाम पर रखा गया है जिन्होंने सबसे पहले सौर हवा का वर्णन किया था.
पार्कर ने इस लॉन्च पर प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, 'वॉउ, यह हम चले! अगले कई सालों तक हम कुछ सीखेंगे.'
यह मिशन का लक्ष्य सीधे हमारी बाहरी वायुमंडल या कोरोना का भौतिक अध्ययन करना है.
डेल्टा-IV हेवी रॉकेट प्रोब को आंतरिक सौरमंडल में पहुंचा देगा. प्रोब शुक्र ग्रह को छह हफ़्ते में पार कर लेगा और अगले छह हफ़्तों में इसकी सूरज से पहली मुलाकात हो जाएगी.
सात सालों के दरम्यान यह यान सूरज के 24 चक्कर लगाएगा.
नासा के इस मिशन का उद्देश्य कोरोना के पृथ्वी की सतह पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करना है. इस अध्ययन से पृथ्वी पर पड़ने वाले इसके असर का पता लगाया जा सकता है.
इस मिशन का उद्देश्य यह पता लगाना भी है कि ऊर्जा और गर्मी किस प्रकार सूर्य के चारों ओर अपना घेरा बनाकर रखने में कामयाब होती हैं.
प्रत्येक परिक्रमा के बाद पार्कर प्रोब यान सूरज के और क़रीब आता जाएगा.
यह ऐसा पहला यान होगा जो उबलते सूरज के सतह से 61 लाख किलोमीटर दूर से नमूने इकट्ठा करेगा.
जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के भौतिकी प्रयोगशाला से जुड़े ब्रिटिश वैज्ञानिक डॉ. निकी फॉक्स ने इसे समझाया, 'मैं समझता हूं कि यह दूरी उतना नज़दीक नहीं लगता. लेकिन यदि यह मान लें कि सूरज और पृथ्वी के बीच दूरी केवल एक मीटर है तो पार्कर सोलर प्रोब सूरज से केवल चार सेंटीमीटर की दूरी पर होगा.'
उन्होंने बीबीसी से कहा, "यह सबसे तेज़ गति से चलने वाला मानवनिर्मित वस्तु होगा जो 6 लाख 90 हज़ार किलोमीटर की गति से सूरज का चक्कर लगाएगा."
इसका वज़न करीब 612 किलो है. जबकि इसकी लंबाई 9 फ़ीट 10 इंच है. सूरज की गर्मी से बचाने के लिए इसमें 11.43 सेंटीमीटर मोटी स्पेशल कार्बन कंपोजिट हीट शिल्ड लगाई गई है.
अनुमान लगाया जा रहा है कि इस शिल्ड को 1300 डिग्री सेल्सियस तापमान का सामना करना पड़ेगा. यह यान अधिकतम 190 किलोमीटर प्रति सेकेंड की गति से सूरज के चक्कर लगाएगा.
यह गति कितनी तेज़ है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस चाल से वाशिंगटन से टोक्यो पहुंचने में केवल एक मिनट का वक्त लगेगा.
इससे पहले 1976 में 'हिलियस-2' नाम का अंतरिक्ष यान सूरज के पास पहुंचा था. तब इस यान की सूरज से दूरी 430 लाख किलोमीटर थी.

Friday, August 10, 2018

“一个星球”峰会提振气候融资雄心

12月12日,来自全球的国家元首、市长和商界领袖齐聚巴黎,共庆《巴黎协定》签订两周年。在此次“一个星球”峰会上,与会的政府、银行、企业和投资机构都高调宣布了一系列有关气候金融的决策。

美国是唯一一个还未承认《巴黎协定》的国家。因此,据报道,特朗普总统并未受邀参加此次峰会。但从峰会的情况来看,特朗普的立场并未削弱全球气候行动。随着气候变化风险在全球议程上重要性不断提升,金融、商业以及政府也在不断加快行动步伐。

从煤炭转向清洁能源

其中一份重磅公告来自世界银行集团,它宣布自2019年起,停止对上游石油和天然气项目的投资。这份声明意义重大,因为根据最近的数据,在《巴黎协定》签署之后,世行仍在投资石油和天然气行业,2016年在化石能源勘探领域投资了约10亿美元。

淘汰煤炭的行动又添新的动力。英国和加拿大牵头成立的“弃用煤炭发电联盟”又吸纳了瑞典、加利福尼亚州以及24个企业界新成员。然而,该联盟面临着的一个重大考验是能否争取到亚洲新兴经济体的加入,后者正是新增煤炭投资集中的区域。

在另一份重要的公告中,23家最大的国家和区域开发银行同意调整自己的融资结构,使其与《巴黎协定》保持一致。国际开发金融俱乐部(IDFC)有69个成员国,麾下总资产超过4万亿美元(26.5万亿元人民币),其最大的成员——中国国家开发银行2015年的承诺资金达1300亿美元(8600亿元人民币)。

确保大型公共银行的投资与《巴黎协定》相一致,这一点意义重大。因为公共金融机构可以通过降低可持续项目的风险来促进社会资本对此类项目的投资。例如,印度国家银行突出强调了它与世界银行建立的一个新伙伴关系,旨在为屋顶太阳能发电系统提供新的信贷额度,从而鼓励更多投资进入该领域。

世界银行还宣布,将对高排放领域的所有项目中采用碳排放影子定价方法,将污染成本考虑在内。前美国国务卿约翰·克里将碳定价称为 “我们(在应对气候变化方面)能做的最重要的一件事”。

中国也是峰会的一大焦点。绿金委主任马骏表示,到2020年“中国每一家上市公司都必须公开环境影响信息”。中国的清洁能源装机容量占全球三分之一,但“一带一路”倡议中海外投资对气候产生的影响也令人担忧。马骏承认,如果不采取措施,“一带一路”建设产生的排放量“可能是中国的三倍”。

私营部门的行动

私营部门也做出了大量承诺,将从化石燃料领域撤资。法国保险业巨头安盛( )将逐步停止对新的煤炭建设项目承保,荷兰银行(ING)将在2025年之前停止煤炭项目贷款。

全球投资者还启动了“气候行动100+”五年计划,以控制排放。令人印象深刻的是,加入此计划的机构资产总额超过26.3万亿美元(174万亿元人民币)。

2017年是绿色金融的发展机遇期,全球绿色债券发行量达到1000亿美元(6620亿元人民币),汇丰银行最近推出全球首个10亿美元的可持续发展债券(66.2亿元人民币)。

英格兰银行行长马克·卡尼透露,已有230多家公司承诺与“气候相关金融信息披露工作组”合作。这些公司的总市值超过6.3万亿美元(417亿元人民币)。工作组建议企业披露有关危害性投资的信息。据卡尼说,如今这一举措正在“成为主流”。

全球最大的养老基金——日本“政府养老投资基金”(GPIF)宣布了一个减少温室气体排放的“基于科学的目标”。日本的目标是到2020年有100家公司制定这一目标,以确保实现化石燃料领域投资的缩减。

城市的发展机遇

这些新的举措为快速发展的亚洲城市带来了新的机遇。“全球市长盟约”成员包括东亚和南亚的34个城市 ,人口占全球总人口的10%以上。该组织宣布与世界银行建立新的气候伙伴关系,在全球150个城市投资45亿美元(300亿元人民币)。欧洲复兴开发银行在推出绿色城市气候融资加速器项目之后,还将大力投资于城市建设。

今年以来,加勒比海几个岛屿遭受了前所未有的飓风袭击,其领导人计划创建世界上第一个“气候智能区”,实施规模高达80亿美元(530亿元人民币)的计划,其中包括100%使用可再生能源。而哥斯达黎加、埃塞俄比亚、德国和瑞典等14个国家也着眼未来,承诺出台计划,争取在2050年前达到碳中和。

最后,中国有望很快启动碳排放交易计划。作为全球领先的能源融资主体,中国是实现《巴黎协定》目标的关键。在这些开发银行、投资者和保险公司的高调承诺之后,全球的目光将转向中国,以及其为绿色金融体系和海外绿色投资所做出的努力。

Wednesday, August 8, 2018

नज़रियाः सरकार की ‘अगस्त क्रांति’ बनाम भाजपा की ओबीसी राजनीति

सत्ताधारी पार्टी और सरकार ने अगस्त के इस पखवाड़े को 'सामाजिक न्याय पखवाड़ा' बताते हुए इसकी तुलना भारत की आज़ादी की लड़ाई के एक अहम मुकाम साल 1942 की विख्यात 'अगस्त क्रांति' से की है.
इस तुलना का राजनीतिक संदर्भ दिलचस्प है. महात्मा गांधी की अगुवाई में तब की 'अगस्त क्रांति' में मौजूदा सत्ताधारियों के राजनीतिक पूर्वजों, संघ-परिवार से सम्बद्ध लोगों की हिस्सेदारी का उल्लेख नहीं मिलता है.
पर मौजूदा सत्ता-नेतृत्व ओबीसी कल्याण के नाम पर उठाए अपने 'दो प्रमुख फ़ैसलों' और दलित-आदिवासी उत्पीड़न निषेध क़ानून के पुराने रूप की वापसी को 'अगस्त क्रांति' जैसा बता रहा है!
शायद इसीलिए इस तरह की बेमेल-तुलना को लोकसभा और कुछ राज्यों के भावी चुनावों की सत्ताधारी दल की तैयारी से जोड़कर देखा जा रहा है.
अगर इन प्रशासनिक फ़ैसलों का वस्तुगत आकलन करें तो इनमें न तो ऐतिहासिक महत्व की कोई उल्लेखनीय बात है और न ही पिछड़ी जातियों में इन्हें लेकर खास उत्साह नज़र आ रहा है!
सरकार का एक प्रमुख फैसला है, पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने का. अनुसूचित जाति या अनूसूचित जनजाति आयोग को पहले से संवैधानिक दर्जा प्राप्त था. लेकिन बाद के दिनों में गठित ओबीसी आयोग को यह दर्जा प्राप्त नहीं था. अब उसका स्तर बढ़ाकर संवैधानिक दर्जा दे दिया गया.
ओबीसी मामलों में सरकार का दूसरा कदम हैः भारत की तमाम पिछड़ी जातियों में श्रेणीकरण (सब-कैटेगेराइजेशन) के विचार का अध्ययन करने और इस बाबत सरकार को उचित सिफ़ारिश देने के लिए गठित जस्टिस जी रोहिणी आयोग.
यह पिछले साल बना था, इसे हाल में नया कार्य-विस्तार मिला है. संविधान के अनुच्छेद-340 के तहत यह आयोग बना था. इसी अनुच्छेद के तहत सन् 1979 में मंडल आयोग भी गठित हुआ था.
इसमें कोई दो राय नहीं कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग( एनसीबीसी) को संवैधानिक दर्जा देकर सरकार ने वाजिब कदम उठाया है. ओबीसी समुदायों की तरफ से इस आशय की मांग भी की जा रही थी. र सवाल है, आयोग का कामकाज और उसका स्वरूप क्या होगा? जिस तरह सिर्फ क़ानून बनाने से कोई समाज सुंदर, सभ्य और समुन्नत नहीं हो जाता, ठीक उसी तरह आयोग को संवैधानिक दर्जा देने मात्र से पिछड़े वर्ग के मसलों, खास तौर पर सामाजिक न्याय के एजेंडे को हासिल नहीं किया जा सकता.
मंडल आयोग लागू होने के 25 साल पूरे हो रहे हैं लेकिन देश की 54 फ़ीसदी से ज्यादा आबादी वाले वृहत्तर ओबीसी समुदाय के बीच से केंद्रीय और सम्बद्ध सेवाओं में 27 फ़ीसदी नियुक्तियां भी आज तक नहीं हुईं! विश्वविद्यालयों-महाविद्यालयों के शिक्षकों की नियुक्तियों में लंबे समय तक आरक्षण के प्रावधान नहीं लागू थे.
2006 में यूपीए-1 सरकार के कार्यकाल में भारी विरोध के बीच शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण लागू हुआ था. तब अर्जुन सिंह केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री थे. लेकिन उच्च शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण के प्रावधानों को तरह-तरह की संस्थागत अधिसूचनाओं से निष्प्रभावी किया जा रहा है.
जिस तरह आनन-फानन में नयी सरकार के सम्बद्ध मंत्रालय ने नियुक्तियों के लिए नया विवादास्पद रोस्टर लागू कराया है, उससे ओबीसी समुदाय के प्रतिभाशाली अभ्यर्थियों की नियुक्तियां भी लगभग असंभव होती जा रही है.
पिछले दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय सहित देश के कई शैक्षणिक संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों, ओबीसी छात्रों एवं अभ्यर्थियों आदि ने बड़ा प्रतिरोध मार्च किया था. मामला संसद में भी गूंजा.
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ने सदन को आश्वासन दिया कि वह रोस्टर सम्बन्धी समस्या का समाधान जल्द करेंगे. सरकार नये रोस्टर के आधार पर होने वाली नियुक्तियों पर पाबंदी लगायेगी. लेकिन मंत्री के आश्वासन के बावजूद देश के अनेक विश्वविद्यालयों ने सैकड़ों नियुक्तियां नये विवादास्पद रोस्टर के आधार पर कर लीं, जिसमें विश्वविद्यालय या महाविद्यालय के बजाय विभाग को इकाई माना गया है.
सवाल उठता है, आरक्षण के प्रावधानों के क्रियान्वयन के पेचीदा मसलों पर संवैधानिक दर्जा-प्राप्त ओबीसी आयोग साहसिक कदम उठायेगा या सरकार में बैठे ताक़तवर लोगों के संकेतों का इंतजार करेगा!
हाल के वर्षों में जिस तरह तमाम संवैधानिक और लोकतांत्रिक संस्थाएं निष्प्रभावी और कुंठित की जा रही हैं, उसे देखते हुए इस आयोग पर भी यह सवाल उठना लाजिमी है.
123वें संविधान संशोधन की रोशनी में गठित किये जाने वाले एनसीबीसी विधेयक को संसद के दोनों सदनों में विपक्ष ने भी समर्थन दिया. लेकिन कुछ सवाल भी उठे.
सरकार ने विपक्ष को आश्वस्त किया कि नया आयोग राज्यों के अधिकारों को पूरा महत्व देगा. कुछ ही दिनों में सरकार जब इस आयोग के सदस्यों की नियुक्ति शुरू करेगी, असल तस्वीर तब सामने आयेगी कि आयोग से वह ओबीसी समुदाय का वाकई कुछ भला करना चाहती है या सिर्फ भाजपा के ओबीसी-एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहती है!
जहां तक ओबीसी में वर्गीकरण या श्रेणीकरण की व्यावहारिकता पर सिफ़ारिश देने के लिए गठित जस्टिस जी रोहिणी आयोग का सवाल है, सरकार उसकी सिफारिशों का बेसब्री से इंतजार कर रही है.
अक्तूबर, 2017 में राष्ट्रपति द्वारा गठित इस आयोग को ओबीसी की केंद्रीय सूची में दर्ज हज़ारों जातियों के सामाजिक और शैक्षिक स्तर का आकलन करके श्रेणीकरण या वर्गीकरण पर अपनी सिफ़ारिश देना है.
भारत में सन् 1931 के बाद जाति-आधारित जनगणना कभी नहीं हुई. सन् 2011 की जनगणना में जाति-आधारित गणना कराने की संसद में पुरजोर मांग उठी. तत्कालीन यूपीए सरकार ने आश्वासन भी दे दिया कि इस पर वह सकारात्मक ढंग से विचार कर ठोस कदम उठायेगी. पर अंततः जाति-आधारित जनगणना नहीं की जा सकी.
बाद में सन् 2014 में केंद्र सरकार ने कुछ राज्यों और एनजीओ आदि के सहयोग से जातियों का एक सर्वे कराया, लेकिन वह न केवल आधा-अधूरा है अपितु आधिकारिक तौर पर जनगणना का हिस्सा भी नहीं है.
उसे किसी भी स्तर पर ओबीसी आबादी का अधिकृत आंकड़ा नहीं माना जा सकता. ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जस्टिस जी रोहिणी आयोग देश की हज़ारों ओबीसी श्रेणी की जातियों के सामाजिक-शैक्षिक स्तर का आकलन कैसे करेगा? उस कथित आकलन के बाद वह ओबीसी के वर्गीकरण या श्रेणीकरण पर एक सुसंगत, तथ्याधारित और वस्तुगत सिफ़ारिश कैसे दे पायेगा?
पिछले दिनों कुछ सरकारी मंत्रालयों/विभागों ने आरटीआई के जरिये अपने अंतर्गत काम करने वाले कर्मियों की जाति-वार संख्या के बारे में पूछे जाने पर उक्त संख्या बताने में असमर्थता जाहिर की थी. उनका कहना था कि उनके पास कर्मियों का जाति-आधारित आंकड़ा ही नहीं है.
ऐसे में जस्टिस रोहिणी आयोग किन तथ्यों के आधार पर श्रेणीकरण या वर्गीकरण पर ठोस सिफारिशें देगा, यह देखना दिलचस्प होगा!
ओबीसी में श्रेणीकरण/वर्गीकरण की बात भाजपा सहित कुछ दलों के नेता पहले से उठाते रहे हैं. इऩका मानना है कि इससे अत्यंत पिछड़ी जातियों को सामाजिक न्याय मिल सकेगा.
इसी आधार पर भाजपा और अन्य दल अत्यंत पिछड़ी जातियों में अपना राजनीतिक आधार तलाशते रहे हैं. पिछड़े वर्ग के कई प्रमुख नेताओं ने भी इस तरह की मांग उठाई है.
इस मांग के सही-ग़लत साबित करने के विवाद में उलझने से ज़्यादा महत्वपूर्ण बात है कि इस वक्त जिस तरह की शासकीय नीतियां अपनाई जा रही हैं, गांव-कस्बे में सरकारी स्कूल या तो खत्म हो रहे हैं या खस्ताहाल हो रहे हैं.
निजी-प्रबंधन वाले पब्लिक स्कूलों, महाविद्यालयों, यहां तक सरकार-संचालित या निजी प्रबंधन वाले उच्च शिक्षण संस्थानों में फ़ीस बेतहाशा बढ़ाई जा रही है.
इसका सर्वाधिक असर दलित, पिछड़ी, खासतौर पर अति पिछड़ी जातियों के छात्रों-युवाओं पर पड़ा है. नीति और योजना के स्तर पर देश का शैक्षिक परिदृश्य जिस तरह अमीर-पक्षी और शहर-पक्षी बनाया जा रहा है, वह हाशिये के समाजों, ग़रीबों और उत्पीड़ित जातियों के युवाओं की शैक्षिक संभावना को रौंद रहा है!
इसका अध्ययन कौन करेगा? क्या इस समस्या का समाधान किये बगैर आरक्षण के प्रावधानों के तहत पिछड़े वर्गों, ख़ासकर अति पिछड़ी जातियों के साथ न्याय हो सकेगा?